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हिन्दी पखवाड़ा

अपने विचारों, मनोभावों को प्रकट करने के लिए हम जिस सपर्क सूत्र का उपयोग करते हैं वह है भाशा। भारत में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाशा हिन्दी है। हिन्दी हमारी आन हे, हिन्दी हमारी षान है हिन्दी हमारी चेतना, वाणी का षुभ वरदान है।

इनर व्हील क्लब सदस्यों की उपस्थिति में 10 सितम्बर को मॅान्टेसरी स्कूल मे ‘हिन्दी पखवाड़ा‘ के उपलक्ष्य में वाद -विवाद प्रतियोगिता व काव्य पाठ प्रतियोगिता का आयोजन किया गाया। माध्यमिक व उच्च माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों ने पूर्ण उत्साह व उमंग से इन प्रतियोगिताओं में भाग लिया।

सर्वप्रथम कक्षा नवी की छात्राओं ने हिन्दी भाशा पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उसके इतिहास से परिचस कराया। माध्यमिक कक्षा के विद्यार्थियों ने ‘किक्रेट ने अन्य खेलों को रन आउट कर दिया हे‘ इस विशय पर अन्तर्सदन वाद-विवाद प्रतियोगिता में भाग लेकर ‘इनर व्हील क्लब‘ से आए अतिथियों व निर्णायक दल के सदस्यों को मत्रंमुग्ध कर दिया। अरावली सदन के प्रतिभागियो ने षिवांग सिंह प्रािम व वेदांष सोम द्वितीय स्थान प्राप्त किया तथा षिवालिक सदन की रिद्धि मल्होत्रा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया।

उच्च माध्यमिक प्रतियोगिता का विशय ‘सामजिक संचार माध्यम आज की युवा पीढ़ी की संवेदनाओं और संबन्धों को प्राभावित कर रहा है‘ पर वाद-विवाद में प्रतिभागियो ने पक्ष-विपक्ष में तर्को की बौछारों से निर्णायक दल को भी निर्णय लेने में पषोपेष में डाल दिया। यहाँ भी नारी षक्ति पर कविता पाठ ने वातावरण में ऐसे जोष व उत्साह का संचार किया कि सब जैसे कह उठे –

नारी तुम हो जगतजननी,

तुम ममतामयी दानी हो

तुम प्रणेता हर क्षेत्र की

नहीं तुमसा कोई सानी हो

अरावली सदन ने वाणी सिंघल प्रथम व एलीजा जोन द्वितीय स्थान प्राप्त किया दिव्या यादव तृतीय नीलगिरि सदन के नाम रहा।

कार्यøम का समापन इनर व्हील के अतिथियों द्वारा पुरस्कार वितरण से हुआ। विद्यालय उनकी गरिमामयी उपस्थिति से गौतवान्वित हो गाया। हम सभी ने हिन्दी दिवस को धूम धाम से मनाया।

नारी शक्ति
यथा नाम तथा शक्ति
नारी की मैं करती हूँ अभिव्यक्ति
नारी का तुम नमन करो
उसे करो तुम शत-शत वंदन
माता, बहन, बेटी बनकर जो
अपना फर्ज निभाती है
घर-आंगन को चहक-चहक कर
मनोरम दृश्य सा फैलाती है
घर की बगिया महक उठती है
उसके मुख का तेज देखकर
ऋतु बसंत सी बढ़ती जाती
मंद पवन का झोका बनकर
खिले कमल सा रूप निखरता
जैसे सूरज का तेज चमकता
तब मात-पिता की चिंता बढ़ती है
बिटिया किस घर जाए दुल्हन बनकर
एक समय फिर ऐसा आता
पुष्प कली सी कुम्लाई सी
अपने अन्दर तेज समेटे
दो कुल की मर्यादा बनकर
अपने हृदय में स्वप्न समेटे
चली दुलारी आज-संवर कर
स्वप्न टूटता है जब उसका
हृदय खण्ड-खण्ड सा होता है
एक नवेली को अग्नि में
फिर प्रज्वलित होना पड़ता है
किन्तु न सहो घात किसी का
नारी शक्ति पहचानो तुम
रण चण्डी का रूप धरो तुम
दुष्टों को ललकारों तुम
अन्याय के विरूद्ध खड़ी हो
फिर से तुम हुंकार भरो
आज दिखा दो अपने बल को
अबला नहीं तुम सबला हो
अपने तेज से चमका दो तुम
आज धरा के कण-कण को
रौद्र रूप फिर देख तुम्हारा
नभ मण्डल भी डोल उठे
हा-हा कर दुष्टों का सीना
करूण रूदन चित्कार भरे
अन्याय के विरूद्ध खड़ी हो
एक उदाहरण बनकर आज
नतमस्तक हों अन्यायी सारे
तेरी हो जय-जय कार
तेरी हो जय-जय कार
तेरी हो जय-जय कार।
-सरिता तिवारी (हिन्दी अध्यापिका)

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