जन्माष्टमी

जब-जब होता नाश धर्म का, और पाप बढ़ जाता है,
तब-तब लेते अवतार प्रभु, फिर विश्व शांति पाता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं उद्घोषित किया है कि अधर्म का विनाश करने के लिए, धर्म की
स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में किसी न किसी रूप में अवतार लेता हूँ।
जन्माष्टमी उसी परमशक्ति के अवतार का आनन्दोत्सव है। जिसे संपूर्ण भारत में पूरे उत्साह और
उल्लास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के द्वितीय प्रहर में
कंस जैसे पापी, अत्याचारी शासक से मथुरा नगरी के निवासियों को मुक्त कराने के लिए कृष्ण इस धरा
पर अवतरित होते हैं। उस लीलाधारी की जन्मलीला भी चमत्कारी है। मथुरा के बंदीगृह से गोकुल में
नंदबाबा के घर तक पहुँचने की संपूर्ण गाथा यह दर्शाती है कि इस धरा का उद्धारक पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर
है।
कृष्ण ने एक साधारण ग्वाले के रूप में माखन चुराते, बाल लीलाएँ करते यह संदेश दिया कि
बाँसुरी की संगीतमय लहरों का आनन्द लेते हुए यदि जीवन के सुखों का अनुभव किया जा सकता है तो
अगले ही पल प्रेम और शांति की स्थापना के लिए युद्ध का शंखनाद भी फूँका जा सकता है।
द मॉन्टेसरी स्कूल में नन्हें-मुन्ने बाल गोपालों के साथ जन्माष्टमी उत्सव धूम-धाम से मनाया गया।
बाल कृष्ण के रूप में सजे बच्चे अपनी चंचलता, चपलता और नृत्य भंगिमाओं से सभी का मन मोह रहे थे।
दही-हाँडी की क्रीड़ा करते बाल गोविन्दा के साथ ‘‘गोविन्दा आला रे’’ कहते हुए सबने खूब आनन्द लिया।
सभी विद्यार्थियों ने उत्सव में मनोयोग से सहयोग दिया।

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